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मैं हूँ भोजताल: भोपाल की धड़कन, सदियों का गवाह!

भोपाल के बड़े तालाब (भोजताल) की पूरी कहानी, उसी की ज़ुबानी। जानें कैसे 11वीं सदी में राजा भोज ने बनवाया ये विशाल जलस्रोत, इसका पर्यावरणीय महत्व और भोपालवासियों के लिए इसकी जीवनरेखा होने की दास्तान।

By: Ajay Tiwari

Jul 20, 20256:15 PM

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मैं हूँ भोजताल: भोपाल की धड़कन, सदियों का गवाह!

अजय तिवारी

मैं भोजपाल का भोजताल हूं... इस शहर के बांशिंदे मुझे 'भोपाल की जान', 'झीलों की नगरी की धड़कन' कहते हैं, और मैं सचमुच इस शहर की पहचान हूँ। मैं भोजताल हूँ, हालाँकि मुझे पहले लोग 'बड़ा तालाब' पुकारा करते थे। मैं सिर्फ पानी का एक विशाल जलाशय नहीं, मैं सदियों का इतिहास हूँ, लोककथाओं का संग्रह हूँ और भोपाल के हर वासी की जीवनरेखा हूँ।

राजा भोज और वो संत

बात 11वीं सदी की है, जब परमार वंश के प्रतापी राजा भोज का राज था। मेरी पैदाइश के पीछे एक बड़ी ही दिलचस्प कहानी है। कहते हैं, राजा भोज एक ऐसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे, जिसे कोई वैद्य ठीक नहीं कर पा रहा था। तब एक संत ने उन्हें सलाह दी: "हे राजन! एक ऐसा विशाल तालाब बनवाओ जिसमें 365 नदियों और नालों का पानी आकर मिले, और फिर उसमें स्नान करने से तुम्हारा रोग दूर हो जाएगा।"

राजा ने अपने सबसे कुशल वास्तुकार और वज़ीर कल्याण सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी। कल्याण सिंह ने श्यामला हिल्स से लेकर मंडीदीप, अब्दुल्लागंज, देवरिया डर और भीमबेटका की पहाड़ियों के बीच पानी के स्रोत खोजे। मैंने आकार लेना शुरू किया, लेकिन 365 जलस्रोतों की संख्या पूरी नहीं हो पा रही थी। तभी एक गोंड सेनापति कालिया ने एक ऐसी अदृश्य नदी का रहस्य बताया, जिसकी सहायक नदियों को जोड़कर यह जादुई संख्या पूरी हुई।

मेरा निर्माण कोलांस नदी पर एक मिट्टी का बड़ा बांध बनाकर किया गया था। बाद में, 1965 में, भदभदा में एक ग्यारह गेट वाला बांध (भदभदा बांध) बना, जो अब कलियासोत नदी के मेरे बहिर्वाह को नियंत्रित करता है। मान्यता है कि मुझमें स्नान करने के बाद राजा भोज का असाध्य रोग सचमुच ठीक हो गया था। यह मेरी पवित्रता और चमत्कारी शक्ति की कहानी है।

मार्च 2011 में, मुझे राजा भोज के सम्मान में औपचारिक रूप से 'भोजताल' का नाम दिया गया। और हाँ, मेरी शोभा बढ़ाने और 'झीलों की नगरी' की पहचान को और मज़बूत करने के लिए मेरे एक किनारे पर राजा भोज की एक विशाल प्रतिमा भी स्थापित की गई है।

मेरा भौगोलिक और पर्यावरणीय आंचल

मैं भोपाल शहर के पश्चिमी मध्य भाग में फैला हुआ हूँ। दक्षिण में मेरे पास वन विहार राष्ट्रीय उद्यान है, पूर्व और उत्तर में इंसानी बस्तियाँ हैं, और पश्चिम में हरे-भरे खेत। मैं लगभग 31 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हूँ और मेरे जलग्रहण क्षेत्र का फैलाव 361 वर्ग किलोमीटर है।

मैं, अपने छोटे भाई छोटा तालाब के साथ मिलकर, एक विशाल 'भोज वेटलैंड' का निर्माण करता हूँ। यह इतना खास है कि 2002 में मुझे अंतर्राष्ट्रीय रामसर स्थल घोषित किया गया। मैं अनगिनत पक्षियों, पौधों और जलीय जीवों का घर हूँ। दूर-दूर से प्रवासी पक्षी आते हैं और मेरी गोद में आकर अपनी थकान मिटाते हैं। मैं इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता का प्रतीक हूँ।

मैं हूँ भोपालियों की जीवनरेखा

मैं सिर्फ एक खूबसूरत झील नहीं हूँ, मैं भोपाल के निवासियों के लिए पीने के पानी का सबसे प्रमुख स्रोत हूँ। मैं शहर की लगभग 40 प्रतिशत आबादी की प्यास बुझाता हूँ। हर दिन लगभग 140,000 घन मीटर पानी की आपूर्ति मुझ ही से होती है।

मैं सिर्फ इंसानों की नहीं, बल्कि अपने तटों के पास रहने वाले किसानों और लगभग 500 मछुआरे परिवारों की भी जीवनरेखा हूँ। मेरी प्राकृतिक सुंदरता मुझे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनाती है। लोग यहाँ नौका विहार के लिए आते हैं, ढलते सूरज का अद्भुत नज़ारा देखते हैं, और मेरे किनारे बसे कमला पार्क में सुकून के पल बिताते हैं। मैं, भोजताल, भोपाल की आत्मा हूँ। मैं यहाँ के इतिहास, पर्यावरण और लोगों के जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ हूँ।


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