सीजेआई ने मॉरीशस में एक समारोह के दौरान बुलडोजर जस्टिस की निंदा करने वाले अपने ही फैसले का उल्लेख किया। सीजेआई मॉरीशस की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं। सीजेआई ने कहा कि राजनीतिक क्षेत्र में, कानून का शासन सुशासन और सामाजिक प्रगति के मानक के रूप में कार्य करता है, जो कुशासन और अराजकता के बिल्कुल विपरीत है।
By: Arvind Mishra
Oct 04, 20251:46 PM
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
सीजेआई बीआर गवई ने कहा-भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से संचालित होती है। कानून के शासन का सिद्धांत और भारत के सुप्रीम कोर्ट की ओर से उसकी व्यापक व्याख्या पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई ने कहा- इस फैसले ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से संचालित होती है। दरअसल, सीजेआई ने मॉरीशस में एक समारोह के दौरान बुलडोजर जस्टिस की निंदा करने वाले अपने ही फैसले का उल्लेख किया। सीजेआई मॉरीशस की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं। सीजेआई ने कहा कि राजनीतिक क्षेत्र में, कानून का शासन सुशासन और सामाजिक प्रगति के मानक के रूप में कार्य करता है, जो कुशासन और अराजकता के बिल्कुल विपरीत है। महात्मा गांधी और आंबेडकर के योगदान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी दूरदर्शिता ने प्रदर्शित किया कि भारत में कानून का शासन केवल नियमों का समूह नहीं है।
बुलडोजर जस्टिस मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कथित अपराधों को लेकर अभियुक्तों के घरों को गिराना कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करता है। कानून के शासन का उल्लंघन करता है। संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
सीजेआई ने कहा कि यह भी माना गया कि कार्यपालिका अन्य भूमिका नहीं निभा सकती। इस मौके पर मॉरीशस के राष्ट्रपति धर्मबीर गोखूल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम और प्रधान न्यायाधीश रेहाना मुंगली गुलबुल भी उपस्थित थे। सीजेआई ने 1973 के केशवानंद भारती मामला सहित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न ऐतिहासिक फैसलों का उल्लेख किया।
सीजेआई गवई ने कहा कि सामाजिक क्षेत्र में, ऐतिहासिक अन्याय के निवारण के लिए कानून बनाए गए हैं। हाशिए पर पड़े समुदायों ने अपने अधिकारों का दावा करने के लिए अक्सर इनका और कानून के शासन की भाषा का सहारा लिया है।
समारोह के दौरान सीजेआई ने हाल के उल्लेखनीय फैसलों का उल्लेख किया, जिनमें मुसलमानों में तीन तलाक की प्रथा को समाप्त करने वाला फैसला भी शामिल है। जस्टिस गवई ने उस फैसले के महत्व पर भी जोर दिया जिसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है।