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कठिन छठ व्रत: इतिहास, महत्व और संतान सुख के लिए निभाई जाने वाली चार दिवसीय परंपरा

छठ पूजा, जिसे लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश (पूर्वी भाग) और नेपाल के मधेश क्षेत्र में मनाया जाता है

By: Ajay Tiwari

Oct 22, 20256:34 PM

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कठिन छठ व्रत: इतिहास, महत्व और संतान सुख के लिए निभाई जाने वाली चार दिवसीय परंपरा

  • लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा: जानें संतान की लंबी आयु
  • कठिन व्रत का महत्व, इतिहास और चार दिवसीय अनुष्ठान

स्टार समाचार वेब. धर्म डेस्क

छठ पूजा, जिसे लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश (पूर्वी भाग) और नेपाल के मधेश क्षेत्र में मनाया जाता है, लेकिन अब इसकी महत्ता देश-विदेश में फैल चुकी है। यह पर्व प्रकृति की शक्तियों, विशेषकर सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया (देवी षष्ठी) को समर्पित है। यह पर्व एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें उगते सूर्य के साथ-साथ डूबते सूर्य को भी अर्घ्य देकर उनकी आराधना की जाती है।

छठ पूजा का धार्मिक महत्व

संतान की कामना और दीर्घायु: छठ व्रत मुख्य रूप से महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। जो महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना करती हैं, उनके लिए भी यह व्रत विशेष फलदायी माना जाता है। पुरुष भी मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए पूरी निष्ठा से यह व्रत करते हैं।

सूर्य देव की उपासना: सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं, जिन्हें ऊर्जा, स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का स्रोत माना जाता है। छठ पूजा में सूर्य की पत्नी ऊषा (सुबह की पहली किरण) और प्रत्यूषा (शाम की अंतिम किरण) की संयुक्त आराधना होती है।

शुद्धता और प्रकृति प्रेम: यह पर्व शुद्धता, स्वच्छता और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। पूजा के दौरान नदी या तालाब के किनारे सामूहिक रूप से अर्घ्य दिया जाता है, जो सामुदायिक एकता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है।

छठ पूजा का पौराणिक इतिहास

छठ पूजा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  • सूर्य पुत्र कर्ण की कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने ही सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। वह घंटों पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे, जिसके आशीर्वाद से वह महान योद्धा बने।

  • द्रौपदी की कथा: महाभारत काल में जब पांडवों ने जुए में अपना सारा राजपाट खो दिया था, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल सका था।

  • राजा प्रियव्रत की कथा: एक अन्य कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत को मृत संतान की प्राप्ति हुई थी। तब ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवी षष्ठी प्रकट हुईं। देवी ने राजा को उनकी पूजा करने और इसका प्रचार-प्रसार करने को कहा। देवी षष्ठी की कृपा से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तभी से यह पूजा की जाती है।

चार दिवसीय छठ अनुष्ठान (Chhath Puja 2025: 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर)

यह महापर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें 36 घंटों का निर्जला व्रत रखा जाता है। (वर्ष 2025 में, छठ पूजा 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर को समाप्त होगी।)

  1. पहला दिन: नहाय-खाय (25 अक्टूबर): इस दिन व्रती पवित्र नदी या जल में स्नान करते हैं और सात्विक भोजन (जैसे चावल, दाल और कद्दू की सब्जी) ग्रहण करते हैं।

  2. दूसरा दिन: खरना (26 अक्टूबर): इसे लोहंडा भी कहते हैं। इस दिन दिनभर उपवास रखा जाता है और शाम को गुड़ या गन्ने के रस से बनी खीर (रसियाव) का भोग लगाया जाता है। इसी प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।

  3. तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर): यह पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। व्रती नदी, तालाब या घाट पर खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देते हैं। इस दौरान सूप (बांस की टोकरी) में ठेकुआ और मौसमी फलों का प्रसाद सजाकर चढ़ाया जाता है।

  4. चौथा दिन: उषा अर्घ्य और पारण (28 अक्टूबर): अंतिम दिन, व्रती उसी स्थान पर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद वे छठी मैया से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं और व्रत का पारण (समापन) करते हैं, जिसके साथ ही प्रसाद वितरण किया जाता है।

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