भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत जोड़े गए 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्दों को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है।
By: Star News
Jun 28, 2025just now
हाइालाइट्स
नई दिल्ली. स्टार समाचार वेब
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत जोड़े गए 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्दों को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को इन शब्दों को 'नासूर' करार देते हुए कहा कि किसी भी संविधान की प्रस्तावना उसकी आत्मा होती है और यह अपरिवर्तनीय होती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत के अलावा दुनिया के किसी भी देश की संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं हुआ है।
उपराष्ट्रपति अपने घर पर एक कार्यक्रम में कहा, आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का 'सबसे अंधकारमय दौर' रहा है। उन्होंने कहा कि उस समय कई लोग जेलों में थे और उनके मौलिक अधिकार निलंबित थे। ऐसे समय में, जब लोग खुद 'दासता' में थे और न्याय प्रणाली तक उनकी पहुंच नहीं थी, 'हम भारत के लोग' के नाम पर संविधान की आत्मा को बदल देना न्याय का सबसे बड़ा उपहास है।
धनखड़ ने कहा कि अगर गहराई से सोचा जाए तो यह एक ऐसा परिवर्तन है जो अस्तित्वगत संकट को जन्म देता है। उन्होंने इन जोड़े गए शब्दों को 'नासूर' बताया, जो उथल-पुथल पैदा करेंगे। उपराष्ट्रपति ने कहा, आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में इन शब्दों को जोड़ा जाना संविधान निर्माताओं की मानसिकता के साथ एक धोखा है। उन्होंने इसे भारत की हजारों वर्षों की सभ्यता की संपदा और ज्ञान का अपमान तथा 'सनातन की आत्मा का अपवित्र अनादर' भी बताया।
'अंबेडकर के संदेश' पुस्तक का विमोचन
कर्नाटक के पूर्व एमएलसी और लेखक डी.एस. वीरैया द्वारा संकलित 'अंबेडकर के संदेश' पुस्तक की पहली प्रति उपराष्ट्रपति को भेंट की गई। धनखड़ ने डॉ. अंबेडकर को एक दूरदर्शी नेता, महामानव और राष्ट्रपुरुष बताते हुए उनके मरणोपरांत भारत रत्न मिलने में हुए विलंब पर अपनी पीड़ा व्यक्त की। उपराष्ट्रपित ने कहा किडॉ. अंबेडकर के संदेश आज भी प्रासंगिक हैं और उनका संदेश घर-घर तक पहुंचना चाहिए, जिसका अनुकरण सांसदों, विधायकों और नीति निर्माताओं द्वारा किया जाना चाहिए।