देशभर की जेलों में अनगिनत कैदी सजा काट रहे हैं। जहां आलम यह है कि अधिकांश जेलों में क्षमता से अधिक बंदी हो गए हैंं। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात पश्चिम बंगाल से सामने आई। जहां राज्य के कम और विदेशी कैदी सबसे ज्यादा है। यह खुलासा एनसीआरबी की रिपोर्ट में हुआ है।
By: Arvind Mishra
Oct 05, 202517 hours ago
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
देशभर की जेलों में अनगिनत कैदी सजा काट रहे हैं। जहां आलम यह है कि अधिकांश जेलों में क्षमता से अधिक बंदी हो गए हैंं। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात पश्चिम बंगाल से सामने आई। जहां राज्य के कम और विदेशी कैदी सबसे ज्यादा है। यह खुलासा एनसीआरबी की रिपोर्ट में हुआ है। दरअसल, एनसीआरबी ने भारतीय जेल सांख्यिकी 2023 की रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार, सबसे ज्यादा विदेशी कैदी पश्चिम बंगाल की जेल में बंद हैं। भारत में 6,956 विदेशी कैदी हैं, जिनमें से 2,508 विदेशी कैदी (36 प्रतिशत) प. बंगाल के सुधार गृहों में कैद हैं। प. बंगाल की जेल में बंद कुल विदेशी कैदियों में ज्यादातर कैदी बांग्लादेशी हैं, जो अवैध रूप से भारत में घुस आए थे। अब उनके खिलाफ भारत में मुकदमा चल रहा है। इन विदेशी कैदियों में कई महिलाएं भी मौजूद हैं।
पश्चिम बंगाल की जेल में 25,774 कैदी बंद हैं, जिनमें 9 प्रतिशत विदेशी नागरिक हैं। इनमें 778 बांग्लादेशी कैदियों के खिलाफ अपराध साबित हो चुके हैं और 1,440 के खिलाफ मामला विचाराधीन है। पश्चिम बंगाल की जेल में बंद विदेशी नागरिकों में दूसरे नंबर पर म्यांमार से आए लोग हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल की जेलों में क्षमता से कहीं अधिक कैदी मौजूद हैं। 2023 में कैदियों की संख्या 120 प्रतिशत आंकी गई है। राज्य की 60 जेलों की क्षमता 21,476 कादियों की है, लेकिन इनमें 25,774 कैदी बंद हैं।
वहीं, राज्य की एकमात्र महिला जेल में 110 प्रतिशत से अधिक कैदी मौजूद हैं। इस जेल में कुल 796 महिला कैदी हैं, जिनमें 204 विदेशी और 12 ट्रांसजेंडर महिलाएं भी शामिल हैं।
क्षमता से अधिक कैदी: राष्ट्रीय स्तर पर जेलों की निर्धारित क्षमता के मुकाबले कैदियों की मौजूदगी यानी आॅक्यूपेंसी रेट 120.8 फीसदी है। इसका मतलब है कि देश भर की जेलों में क्षमता से औसतन 20.8 फीसदी फीसदी अधिक कैदी रह रहे हैं।
विचाराधीन कैदी से जुड़ा संकट: कुल कैदियों में से 73.5 फीसदी विचाराधीन कैदी हैं, जो न्याय मिलने में देरी को दर्शाता है।
मानसिक स्वास्थ्य और मौत: हिरासत में अप्राकृतिक मौतों की बढ़ती घटनाएं कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य-देखभाल की उपेक्षा को दर्शाती हैं। इन मौतों में अधिकतर मामलें आत्महत्या से संबंधित हैं।
महिलाओ के लिए सुविधाओं की कमी: कुल कैदियों में 4.1 फीसदी महिलाएं हैं। जेलों में उनके लिए अलग से सुविधाओं, स्वच्छता और पर्याप्त चिकित्सीय देखभाल की कमी है।